Friday, September 19, 2008

दिल ने चाहा.....

के खुल के रो लू दिल ने चाहा.....
के मुस्कुराते मुखोटे को जला दू दिल ने चाहा ....

जो अरमानो को दबाया कुछ सायो क लिए ,
जी लू उन संग कुछ पल जीने के लिए,
जलाया अपनी रोह को कुछ कर्मो क लिए ,
उस राख को घोल पी लू हसीं नशे के लिए.
उस नशे में ही शायद दिल राज़ खोल दे,
दिल में कैद शब्दों की बात बोल दे.

के खुल के रो लू दिल ने चाहा.....
के आंसुओ में गम को डूबा दू दिल ने चाहा ...

ना फ़रमाया हमने फरमाइशो के लिए,
ना जताया हमने कुछ नजदीकियों के लिए,
जो चला चले उन संग एक सफ़र के लिए,
हर नकारात्मक की फिदरत बदलने के लिए,
अपनी स्मिति से उनकी सूरत में ढलने के लिए,
अगर जादू है तोह हां कुछ करिश्मों के लिए.

के खुल के रो लू दिल ने चाहा.....
पर कोन आएगा आंसू पोछने दिल को समझाया,
दिल बोला बोहत है तेरे भी चाहने वाले,
पर दिल क्या जाने सब चाहते है तब तक,
जब तक हम है मुस्कुराते हुए उनको समझाने वाले......
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